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मौसम–मौसम- कल रात
रोज़ बदलता मौसम

 

रास्ते

अपने पाँवों से चली
तो जाना
रास्ते कितने लंबे हैं
वरना कब, इस तरह, अकेले,
घर से निकलना हुआ था!

विश्वास

सूई की नोक भर विश्वास था मन में।
सूई की नोक पर बैठी रही रात भर।
चुभता रहा मन में अपना ही विश्वास
सहती गई रात भर।

अंतर

मैंने पलाश की एक डाली हिलाई
और झर गया मेरी गोदी में
अथाह सौंदर्य!
तुम मर मिटे
पुरुष हो!
मैं चुपचाप निरखती रही
सुगंध तलाशती रही
स्त्री हूँ न!

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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