अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शशि पाधा की रचनाएँ

नए दोहों में-
गूँगी मन की पीर

गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
पाती
बस तेरे लिए

मन रे कोई गीत गा
मन की बात
मैली हो गई धूप
मौन का सागर
लौट आया मधुमास

संधिकाल

संकलनों में-
फूले कदंब- फूल कदंब

होली है- कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन- नव वर्ष आया है द्वार
वसंती हवा- वसंतागमन

नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन

मन की बात

 

 

 

गूँगी मन की पीर

मन तपता तन बाँवरा, नयनन बरसे नीर
मौन विरह की रागिनी, गूँगी हो गई पीर

मेघा पाती ले उड़ा, मनवा उड़ता संग
अँसुयन आखर धुल गए,कागद कारे रंग

तप-तप पिघली देहरी, विरही अगना सताय
मुंदरी हो गई कंगना, छाया सी कृशकाय

विरहन करती रतजगा, तारे जागें साथ
अँखियन चुभती चाँदनी, बड़ी हठीली रात

निर्मोही की क्या कहूँ, भाया पश्चिम देस
नहिं आए मधुमास में, ना भेजा सँदेस

पवन बजाय बाँसुरी, पी के गीत सुनाय
मन चकोर है बाँवरा, चन्दा ढूँढ़न जाय

मिले तो केवल दो घड़ी, बिछुड़े यूँ युग चार
प्रीति के इस हाट में, घाटे का व्योपार

दिन गिन-गिन छाला पड़ा,अँगुली घाव न जाय
दूर देस जा वैद बसे, मरहम कौन लगाय

मन माँझी परदेस गये, संग ले गए पतवार
कैसे जाना होगा अब, प्रेम नदी के पार

अधरों पे इक नाम जड़, जप-जप माल बनाय
दो नयना पथ में जड़े, सावन पलक समाय

बन्द करूँ तो आँख में, खोलूँ तो कित ओर
लुकाछिपी के खेल में, जीत गए चितचोर

मन्दिर दीवा बारती, तुलसी रोज़ मनाय
हथ कँगना मैं वार दूँ, प्रियतम लौट जो आय

२६ सितंबर २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter