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अनुभूति में सुमन कुमार घई की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कैसी वसंत ऋतु
खो चुका परिचय
चीत्कार
जीवन क्रम
प्रेम कहानी
प्रेम के दो भाव
मनदीप पुकार
मैं उसे ढूँढता हूँ
वह पेड़ टूट गया

क्षणिकाओं में-
वसंत

संकलनों में-
वसंती हवा- काश मिलो तुम भी
धूप के पाँव- गरमी की अलसाई सुबह
वर्षा मंगल– सावन और विरह
गाँव में अलाव – स्मृतियों के अलाव
गुच्छे भर अमलतास– अप्रैल और बरसात
                  शुभकामनाएँ
नया साल– नव वर्ष की मंगल वेला पर
         –नव वर्ष के गुब्बारे
जग का मेला– गुड्डूराजा

 

 

मन–दीप पुकार

मन–दीप जल रहा
पूछता यही प्रश्न बार–बार
गत वर्ष प्रण किया –
कि मिटाओगे अंधकार?


गगन से अग्नि
रह रह बरसती रही
लेखनी तुम्हारी
प्रेम–गीत रचती रही।
कैसे रहे मौन तुम –
हर दिशा में हो रहा था अत्याचार।।


नेता पुराने भाषण
दोहराते रहे
तुम भी पुराने
गीत गुनगुनाते रहे।
नव विचार अंकुर फूटे –
तुम्हीं ने कुचल दिए वह कर पग–प्रहार।।


कहते – लेखक हो
जनता के स्वर हो
जन–वाणी के
तुम ही अधर हो
बधिर मूक हो तुम –
सुन न सके जो जनता की ही पुकार।।


शब्दों में शक्ति है
हर चोट सहलाने की
क्षमता होती गीतों में
पीड़ा भुलाने की।
पराई पीड़ा – निज समझो –
तब ही कुछ रचोगे जो करे उपकार।।


अन्तर्मन का स्वर
तुम्हारा हृदय दीप हूँ
मेरे बिन न तेरा जीवन
इतना समीप हूँ।
मेरी न करो उपेक्षा –
मन क्रन्दन बन करता रहूँगा प्रतिहार।।


वर्ष फिर एक
बीत चुका है
जीवन घट और
रीत चुका है।
देहरी पर खड़ा समय –
रहा तुम्हारी कर्मठता ललकार।।

मन–दीप जल रहा
पूछता यही प्रश्न बार–बार
गत वर्ष प्रण किया –
कि मिटाओगे अंधकार?

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