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अनुभूति में रामधारी सिंह दिनकर की
रचनाएँ -

आग की भीख
कलम आज उनकी जय बोल
कवि
गीत
जवानी का झंडा
भगवान के डाकिये
वीर
समरशेष है
सावन में
हिमालय
हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

संकलन में -
वर्षामंगल - पावस गीत
गाँव में अलाव - मिथिला में शरद
प्रेमगीत - नामांकन
मेरा भारत - ध्वजा वंदना
जग का मेला - चाँद का कुर्ता

  हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ, ओ मखमल-भोगियो।
श्रवण खोलो,
रुक सुनो, विकल यह नाद
कहाँ से आता है।
है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट रहे?
वह कौन दूर पर गाँवों में चिल्लाता है?

जनता की छाती भिंदे
और तुम नींद करो,
अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूँगा।
तुम बुरा कहो या भला,
मुझे परवाह नहीं,
पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने दूँगा।।

हो कहाँ अग्निधर्मा
नवीन ऋषियों? जागो,
कुछ नई आग,
नूतन ज्वाला की सृष्टि करो।
शीतल प्रमाद से ऊँघ रहे हैं जो, उनकी
मखमली सेज पर
चिनगारी की वृष्टि करो।

गीतों से फिर चट्टान तोड़ता हूँ साथी,
झुरमुटें काट आगे की राह बनाता हूँ।
है जहाँ-जहाँ तमतोम
सिमट कर छिपा हुआ,
चुनचुन कर उन कुंजों में
आग लगाता हूँ।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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