| कवि 
                  उषा थी युग से खड़ी लिएप्राची में सोने का पानी,
 सर में मृणाल-तूलिका, तटी में
 विस्तृत दूर्वा-पट धानी।
 खींचता चित्र पर कौन? छेड़तीराका की मुसकान किसे?
 बिम्बित होते सुख-दुख, ऐसा
 अन्तर था मुकुर-समान किसे?
 दन्तुरित केतकी की छवि परथा कौन मुग्ध होनेवाला?
 रोती कोयल थी खोज रही
 स्वर मिला संग रोनेवाला।
 अलि की जड़ सुप्त शिराओं कोथी कली विकल उकसाने को,
 आकुल थी मधु वेदना विश्व की
 अमर गीत बन जाने को।
 थी व्यथा किसे प्रिय? कौन मोलकरता आँखों के पानी का?
 नयनों को था अज्ञात अर्थ
 तब तक नयनों की वाणी का।
 |