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अनुभूति में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' की रचनाएँ-

नए गीतों में-
कब होंगे आज़ाद हम
झुलस रहा है गाँव
बरसो राम धड़ाके से
भाषा तो प्रवहित सलिला है
मत हो राम अधीर

हाइकु में-
हाइकु गज़ल

गीतों में-
आँखें रहते सूर हो गए
अपने सपने
ओढ़ कुहासे की चादर
कागा आया है
चुप न रहें
पूनम से आमंत्रण
मगरमचछ सरपंच
मीत तुम्हारी राह हेरता
मौन रो रही कोयल
संध्या के माथे पर

सूरज ने भेजी है

दोहों में-
फागुनी दोहे

  बरसो राम धड़ाके से

बरसो राम धड़ाके से !
मरे न दुनिया फाके से !

लोकतंत्र की
जमीं पर, लोभतंत्र के पैर
अंगद जैसे जम गए अब कैसे हो खैर?
अपनेपन की आड़ ले, भुना
रहे हैं बैर
देश पड़ोसी मगर बन- कहें मछरिया तैर
मारो इन्हें कड़ाके से, बरसो राम
धड़ाके से !
मरे न दुनिया फाके से !

कर विनाश
मिल, कह रहे, बेहद हुआ विकास
तम की कर आराधना- उल्लू कहें उजास
भाँग कुएँ में घोलकर, बुझा
रहे हैं प्यास
दाल दल रहे आम की- छाती पर कुछ खास
पिंड छुड़ाओ डाके से, बरसो राम
धड़ाके से !
मरे न दुनिया फाके से !

मगरमच्छ
अफसर मुए, व्यापारी घड़ियाल
नेता गर्दभ रेंकते- ओढ़ शेर की खाल
देखो लंगड़े नाचते, लूले
देते ताल
बहरे शीश हिला रहे- गूँगे करें सवाल
चोरी होती नाके से, बरसो राम
धड़ाके से !
मरे न दुनिया फाके से !

२० सितंबर २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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