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अनुभूति में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' की रचनाएँ-

नए गीतों में-
कब होंगे आज़ाद हम
झुलस रहा है गाँव
बरसो राम धड़ाके से
भाषा तो प्रवहित सलिला है
मत हो राम अधीर

हाइकु में-
हाइकु गज़ल

गीतों में-
आँखें रहते सूर हो गए
अपने सपने
ओढ़ कुहासे की चादर
कागा आया है
चुप न रहें
पूनम से आमंत्रण
मगरमचछ सरपंच
मीत तुम्हारी राह हेरता
मौन रो रही कोयल
संध्या के माथे पर

सूरज ने भेजी है

दोहों में-
फागुनी दोहे

  झुलस रहा है गाँव

झुलस रहा गाँव
घाम में झुलस रहा

राजनीति बैर की उगा रही फसल
मेहनती युवाओं की खो गयी नसल
माटी मोल बिक रहा बजार में असल
शान से सजा माल में नक़ल

गाँव शहर से कहो
कहाँ अलग रहा?
झुलस रहा गाँव
घाम में झुलस रहा

एक दूसरे की लगे जेब काटने
रेवड़ियाँ चीन्ह-चीन्ह लगे बाँटने
चोर-चोर के लगा है ऐब ढाँकने
हाथ नाग से मिला लिया है साँप ने

'सलिल' भले से भला ही
क्यों विलग रहा?
झुलस रहा गाँव
घाम में झुलस रहा

२० सितंबर २०१०

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