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अनुभूति में डॉ. अजय पाठक की रचनाएँ-

नए गीत-
उज्जयिनी में
कहो सुदामा
फागुन के दिन
जीने का अभ्यास
सौ-सौ चीते

गीतों में
अनुबंध
आदमखोर हवाएँ
कबिरा तेरी चादरिया
कुछ तेरे, कुछ मेरे
गाँव
चारों धाम नहीं
चिरैया धीरे धीरे बोल
जीना हुआ कठिन
जोगी
दर्द अघोरी
पुरुषार्थ
बादल का पानी
भोर तक
मौन हो गए
यामिनी गाती है

सफलता खोज लूँगा
समर्पित शब्द की रोली
हम हैं बहता पानी बाबा

संकलन में
नव सुमंगल गीत गाएँ
महुए की डाली पर उतरा वसंत
बादल का पानी

 

चिरइया, धीरे-धीरे बोल!

चिरइया, धीरे-धीरे बोल!

अंतर्मन के अध्यायों के पन्नों को मत खोल।
अभी-अभी तो अपनी आँखें प्राची ने खोला है,
मलयानल है, मन का तरुवर अभी नहीं डोला है।
अरी निर्दयी! अभी हृदय में पीड़ा तो मत घोल।
चिरइया, धीरे-धीरे बोल!

विरह-वेदना में ही गुंफित तेरा गुंजित स्वर है,
सत्य सनातन यह भी लेकिन, सुख भी तो नश्वर है।
क्षण भर का जीवन है अपनी! बातों में रस घोल।
चिरइया, धीरे-धीरे बोल!

उगते सूरज को अंबर में थोड़ा तो चढ़ने दे,
पीडा की लंबी परछाई बढ़ती है बढ़ने दे,
धूप-छाँव के चलते क्रम को अनुभव से ही तोल।
चिरइया, धीरे-धीरे बोल!

तेरा यह आलाप हृदय को बेकल कर जाता है,
मन के सूखे अंतःसर में सागर भर जाता है,
महाप्रलय के द्वार-अबूझे-शब्दों से मत खोल।
चिरइया, धीरे-धीरे बोल!

झरते वन का सूखा तरुवर अपना ठौर-ठिकाना,
ऊपर से तेरा यह निष्ठुर विरही तान सुनाना,
नयन-कोर से झर जाते हैं रतन कई अनमोल।
चिरइया, धीरे-धीरे बोल!

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