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अनुभूति में डॉ. अजय पाठक की रचनाएँ-

नए गीत-
उज्जयिनी में
कहो सुदामा
फागुन के दिन
जीने का अभ्यास
सौ-सौ चीते

गीतों में
अनुबंध
आदमखोर हवाएँ
कबिरा तेरी चादरिया
कुछ तेरे, कुछ मेरे
गाँव
चारों धाम नहीं
चिरैया धीरे धीरे बोल
जीना हुआ कठिन
जोगी
दर्द अघोरी
पुरुषार्थ
बादल का पानी
भोर तक
मौन हो गए
यामिनी गाती है

सफलता खोज लूँगा
समर्पित शब्द की रोली
हम हैं बहता पानी बाबा

संकलन में
नव सुमंगल गीत गाएँ
महुए की डाली पर उतरा वसंत
बादल का पानी

  गाँव

पगडंडी पर छाँवों जैसा कुछ भी नही दिखा,
गाँवों में अब गाँवों जैसा कुछ भी नहीं दिखा।

कथनी सबकी कड़वी-कड़वी, करनी टेढ़ी-टेढ़ी,
बरकत और दुआओं जैसा कुछ भी नहीं दिखा।

बिछुआ, पैरी, लाल महावर, रुनझुन करती पायल,
गोरे-गोरे पाँवों जैसा कुछ भी नहीं दिखा।

राधा, मुनिया, धनिया, सीता जींस पहनती है,
उनमें शोख अदायों जैसा कुछ भी नहीं दिखा।

बरगद, इमली, महुआ, पीपल, शीशम लुप्त हुए,
शीतल मंद हवाओं जैसा कुछ भी नहीं दिखा।

पंचायत में राजनीति की गहरी पैठ हुई,
तब से ग्राम-सभाओं जैसा कुछ भी नहीं दिखा।

16  अप्रैल 2007

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