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अनुभूति में डॉ. अजय पाठक की रचनाएँ-

नए गीत-
उज्जयिनी में
कहो सुदामा
फागुन के दिन
जीने का अभ्यास
सौ-सौ चीते

गीतों में
अनुबंध
आदमखोर हवाएँ
कबिरा तेरी चादरिया
कुछ तेरे, कुछ मेरे
गाँव
चारों धाम नहीं
चिरैया धीरे धीरे बोल
जीना हुआ कठिन
जोगी
दर्द अघोरी
पुरुषार्थ
बादल का पानी
भोर तक
मौन हो गए
यामिनी गाती है

सफलता खोज लूँगा
समर्पित शब्द की रोली
हम हैं बहता पानी बाबा

संकलन में
नव सुमंगल गीत गाएँ
महुए की डाली पर उतरा वसंत
बादल का पानी

  कुछ तेरे, कुछ मेरे

अंतर्मन के भोज पत्र पर,
गीत लिखे बहुतेरे
सजनी, कुछ तेरे, कुछ मेरे. . .

जब-जब सूरज को देखूँ मैं,
अंजानी-सी लगन लगे।
तेरे पथ की रखवाली में,
रात-रात भर नयन जगे।
दुविधाओं में घिरे हुए दिन,
चिंताओं के फेरे
सजनी, कुछ तेरे, कुछ मेरे. . .

मुझको देख विहँसता चंदा
जब-जब आधी रात का,
पात-पात बिखरा जाता है
मौसम झंझावात का।
इन लम्हों ने मटमैले-से
कितने चित्र उकेरे।
सजनी, कुछ तेरे, कुछ मेरे. . .

अलकों पर सपनों के मोती,
झरते धीरे-धीरे।
भीतर संचित है कितने ही,
माणिक-मुक्ता-हीरे।
मुझको बाँध लिया करते हैं,
इंद्र धनुष के घेरे
सजनी, कुछ तेरे, कुछ मेरे. . .

अंतर्मन के भोज पत्र पर,
गीत लिखे बहुतेरे
सजनी, कुछ तेरे, कुछ मेरे . . .

16  अप्रैल 2007

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