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अनुभूति में धनंजय सिंह की रचनाएँ-

गीतों में-
दिन क्यों बीत गए

ध्वन्यालोकी प्रियंवदाएँ
पानी थरथराता है
बेच दिये हैं मीठे सपने
भाव विहग
मधुमय आलाप
मौन की चादर

 

 

 

 

ध्वन्यालोकी प्रियंवदाएँ

आकुलता को
नए-नए आयाम दे दिए
मन के
आसपास महकाकर मधु-गंधाएँ

एक शब्द के लिए
गीत का
ताना-बाना कौन बुनेगा
बुन भी लें तो
मनोयोग से
रुदन हमारा कौन सुनेगा
यों तो
छंदों में रोने की
रीत पुरानी
पर अपनी भी
नई कहाँ है राम कहानी

दुर्बलताएँ
मन को पहले ही घेरे थीं
इस पर भी
जादू रच बैठीं मधु-छंदाएँ

पीड़ा के
छांदोग्य भाष्य का
अनुभव पर्व लिखा जब मैंने
क्रोंच-मिथुन
या हंस सभी के
गए रुलाकर घायल डैने
दुख-दर्दों से
रहे हमारे
जनम-जनम के रिश्ते-नाते
फिर भी गीत
व्रती होकर हम
गाते तो पंचम में गाते

फिर स्वर को
यों कील न पातीं
ध्वन्यालोकी प्रियम्वदाएँ

२३ अप्रैल २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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