अनुभूति में
कुमार रवींद्र
की रचनाएँ
नए गीत-
कल तो दिन भर
दिन बरखा बिजुरी के
पानी बरसा रात
बरखा
आए
बादल गरजे
सावन आए
गीतों में
अपराधी देव हुए
इसी गली के आखिर में
और दिन भर...
खोज खोज हारे हम
गीत तुम्हारा
ज़रा सुनो तो
पीपल का पात हिला
बहुत पहले
मेघ सेज पर
वानप्रस्थी ये हवाएँ
शपथ
तुम्हारी
संतूर बजा
सुनो सागर
हम नए हैं
हाँ सुकन्या
संकलन में-
बरगद-
बरगद ठूँठ हुआ
खिलते हुए पलाश-
टेसू के फूलों वाले दिन
नयनन में नंदलाल-
टेर
रही कनुप्रिया
नयनन में नंदलाल-
वंशी
की धुन
नया साल-
वर्ष की पहली सुबह
नया साल-
तरीका नव वर्ष मनाने का
होली है-
दिन
वसंत के
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बरखा आए
बरखा-आए
भीगे सारे
पर्वत-जंगल औ' बंजर भी
कई महीनों धूप तपे थे
जी-भर के अब नहा रहे हैं
घाटी में भी, देखो, कैसे
झरने-नाले उमग बहे हैं
हँसता कैसा
उधर शिवाला
टीलेवाला रब का दर भी
पेड़ों ने भी महक संजोई
भीगी माटी की सीने में
म्याऊं बिल्ली भी उत्पाती
छिपकर बैठी है जीने में
गाँव-गली में
कजरी गूँजे
पिकनिक होते महानगर में
जो पगडंडी राख हुई थी
हरी-भरी हो गई अचानक
उत्सव-पर्वों के घर-घर में
सुनो, बन रहे फिर से बानक
साँसों में
धुन है मल्हार की
गीत गा रहा अपना घर भी
२ अगस्त २०१० |