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अनुभूति में कुमार रवींद्र की रचनाएँ

नए गीत-
कल तो दिन भर
दिन बरखा बिजुरी के
पानी बरसा रात

रखा आए
बादल गरजे
सावन आए

गीतों में
अपराधी देव हुए
इसी गली के आखिर में
और दिन भर...
खोज खोज हारे हम

गीत तुम्हारा
ज़रा सुनो तो
पीपल का पात हिला
बहुत पहले
मेघ सेज पर
वानप्रस्थी ये हवाएँ
शपथ तुम्हारी
संतूर बजा
सुनो सागर
हम नए हैं

हाँ सुकन्या

 

पानी बरसा रात

पानी बरसा रात
हवा में
भीगी-भीगी सी मिठास है

फूलोंवाली परी
मेंह का शाल लपेटे
खड़ी घाट पर
गर्मी भर झुलसा था
पूरी रात नहाया है पूजाघर

अपना
चंपा भी तो
बरखा- बूँदों का पहने लिबास है

एक नदी भीतर भी उमड़ी
उसमें साँसें नहा रही हैं
धूप सुबह की बाँच रही
जो ग़ज़ल
घटा ने रात कही है

उसे सुन रही
आँखें मूँदे
फिर से जनमी हरी घास है

उधर अभी भी
इन्द्रधनुष के पुल पर
छितरी हुई घटाएँ
झुर्री- झुर्री आँक रहा
बूढ़ा बरगद
सावनी छटाएँ

थकी देह में
जाग रही फिर
आदिम युग की घनी प्यास है

२ अगस्त २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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