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अनुभूति में मालिनी गौतम की रचनाएँ-

गीतों में-
अँधेरा घना है
अपना मन झकझोर
बदली बदली सी है सूरत
मेरा मन
मौसम बदल गया
रूप अनोखे

अंजुमन में-
कभी आँखे दिखाते हो
ख्वाब आँखों में
चाय की कुछ चुस्कियों में
दफ्न कर अपनी तमन्ना
भूख गरीबी लाचारी है

 

दफ्न कर अपनी तमन्ना

दफ्न कर अपनी तमन्ना जिंदगी पाती गरीबी
जब भी गंदी बस्तियों में पाँव फैलाती गरीबी

दूध में पानी मिलाकर अपने बच्चे पालती जो
उस बिचारी माँ के दिल की आह बन जाती गरीबी

होटलों के सामने चक्कर लगाती रात-दिन ये
पेट भरने के लिये जूठन उठा लाती गरीबी

झुग्गियों को तोड़कर ऊँचे भवन जो हैं बनाते
उन अमीरों को सदा है आँख दिखलाती गरीबी

मंच पर से जो गरीबी पर सदा आँसू बहाते
जान लें वे आग पीती, आग ही खाती गरीबी

कोई कहता कोढ़ है, तो कोई कहता खाज है ये
देश की सम्पन्नता पर दाग लगवाती गरीबी

वोट पाने के लिये वे स्वप्न तो बेशक दिखाते
किंतु उनके राज में सुरसा-सी मुँह बाती गरीबी

देखकर अपनी दशा वो तिलमिलाती तो बहुत है
किंतु अपनी बेबसी से लड़ नहीं पाती गरीबी

१३ अप्रैल २०१५

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