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अनुभूति में मालिनी गौतम की रचनाएँ-

गीतों में-
अँधेरा घना है
अपना मन झकझोर
बदली बदली सी है सूरत
मेरा मन
मौसम बदल गया
रूप अनोखे

अंजुमन में-
कभी आँखे दिखाते हो
ख्वाब आँखों में
चाय की कुछ चुस्कियों में
दफ्न कर अपनी तमन्ना
भूख गरीबी लाचारी है

 

रूप अनोखे

जीवन की डोरी को साधे
नटनी जैसी चलती तू!

माँ-बाबा के घर-आँगन की
तू ही तो किलकारी है
पावन कर दे कोना-कोना
तू तुलसी की क्यारी है

बेटे कुल-दीपक कहलाते
कंदिल बन कर जलती तू!

भाई की नटखट बातों पर
मन ही मन मुसकाती है
सुख-दुख में परछाई बनकर
माँ-सा प्यार लुटाती है

संबंधों की ओढ़ चुनरिया
कितने रूप बदलती तू!

प्रियतम की साँसों में घुलकर
चन्दन-सा महकाती है
सूखे-बंजर, नीरव तट पर
बन सरिता बह जाती है

गीली माटी-सी चक्के पर
नये रूप में ढलती तू!

दिनकर के गालों पर लाली
तूने ही बिखराई है
आम्र-बौर ने मादक खुशबू
तुझसे ही तो पाई है

जीवन के हर इक चेहरे पर
रंग अनोखे मलती तू!

२० जुलाई २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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