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अनुभूति में मालिनी गौतम की रचनाएँ-

गीतों में-
अँधेरा घना है
अपना मन झकझोर
बदली बदली सी है सूरत
मेरा मन
मौसम बदल गया
रूप अनोखे

अंजुमन में-
कभी आँखे दिखाते हो
ख्वाब आँखों में
चाय की कुछ चुस्कियों में
दफ्न कर अपनी तमन्ना
भूख गरीबी लाचारी है

 

ख्वाब आँखों में

ख़्वाब आँखों में मेरी इक घर बनाने लग गये
चाँद-तारे भी उतर कर झिलमिलाने लग गये

रोशनी से घर सजाना जिन दियों का काम था
वे हवा का साथ पाकर घर जलाने लग गये

कुछ क़दम तो चल दिये इक दूसरे को थाम कर
वो हमें और हम उन्हें फिर आज़माने लग गये

राह में जो कल तलक पलकें बिछाये थे खड़े
स्वार्थ जब पूरा हुआ नज़रें चुराने लग गये

थे किये वादे उन्होंने हाथ दोनों जोड़ कर
पर मिली जैसे ही सत्ता भाव खाने लग गये

कुछ क़दम तक साथ देकर चल दिये वो छोड़कर
उनकी यादों को भुलाने में ज़माने लग गये

सर्द बर्फीली हवाओं ने जिन्हें कुचला कभी
गुनगुनाती धूप में वो सिर उठाने लग गये

१३ अप्रैल २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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