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अनुभूति में रामस्वरूप सिंदूर की रचनाएँ— 

नयी रचनाओं में-
ऐसे क्षण आए
खो गई है सृष्टि
झंकृत धरती आकाश
बाहर के मधुबन से
सब कुछ भूला

गीतों में-
अकथ्य को कहने का अभ्यास
आत्म-पुनर्वास भी जियें
आनन्द-छन्द मेरे
घर में भी सम्मान मिला है
ज्वार के झूले पड़े हैं
जन्मान्तर यात्राएँ की हैं
मौन टूटा छंद में
तय न हो पाया
देने को केवल परिचय है
देह मुक्ति मिल गयी मुझे
मरने से क्या होगा
मैं जीवन हूँ
शब्द के संचरण मे
स्वीकार लिया भुजबन्ध
सावन में

‘सुनामी’ ज्वार रह गया हूँ

संकलन में-
होली है- अनुबंध लिखूँ
वर्षा मंगल- अब की
बरखा

 

बाहर के मधुबन से

बाहर के मधुबन से
टूटा नाता
पर क्या हो भीतर के
नन्दन-वन का!

तैरते रंग अन्तर-धाराओं में
गुह्यतम गुफायें सौरभ गाती हैं
जन्मान्ध घाटियाँ झील-झील होतीं
संवेगों में तितलियाँ नहाती हैं।

बाहर के सावन से
टूटा नाता
पर क्या हो भीतर के
रस-वर्षन का!

आँखों की ओट छिपी सौ-सौ आँखें
घूमते स्वप्न मीना-बाज़ारों में
अधरों की ओट खुली मधुशालायें
अन्तरध्वनियाँ झूमती बहारों में

बाहर के गुंजन से
टूटा नाता
पर क्या हो भीतर के
कल-कूजन का!

मैं प्रथम छन्द संसृति के उस क्षण का
जिसने फूलों को गन्ध कहा होगा
मैं काल-पात्र उस आदिम यौवन का
जो विम्बों में आसक्त रहा होगा

बाहर के दर्पण से
टूटा नाता
पर क्या हो भीतर के
सम्मोहन का!

१ फरवरी २०१६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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