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अनुभूति में रामस्वरूप सिंदूर की रचनाएँ— 

नयी रचनाओं में-
ऐसे क्षण आए
खो गई है सृष्टि
झंकृत धरती आकाश
बाहर के मधुबन से
सब कुछ भूला

गीतों में-
अकथ्य को कहने का अभ्यास
आत्म-पुनर्वास भी जियें
आनन्द-छन्द मेरे
घर में भी सम्मान मिला है
ज्वार के झूले पड़े हैं
जन्मान्तर यात्राएँ की हैं
मौन टूटा छंद में
तय न हो पाया
देने को केवल परिचय है
देह मुक्ति मिल गयी मुझे
मरने से क्या होगा
मैं जीवन हूँ
शब्द के संचरण मे
स्वीकार लिया भुजबन्ध
सावन में

‘सुनामी’ ज्वार रह गया हूँ

संकलन में-
होली है- अनुबंध लिखूँ
वर्षा मंगल- अब की
बरखा

 

 

स्वीकार किया भुजबन्ध

मैं खण्ड-खण्ड
हो गया, एक सम्मूर्तन के लिये।
स्वीकार लिया भुजबन्ध, एक त्रिभुवन क्षण के लिये।

तन तो प्रसून था,
बिखर गया, पर मन मकरन्द हुआ,
अन्तर्ध्वनि को इतना गाया, सम्भाषण छन्द हुआ,
मैं कण्ठ-कण्ठ हो गया, एक सम्बोधन के लिये।


मैं किरण-किरण
डूबा जन में, बादल-बादल उभरा,
सूरज, सागर हो गया और सागर कुहरा-कुहरा,
मैं रूप-रूप हो गया, एक सम्मोहन के लिये।


मैंने अनन्त पथ
को गति की सीमा में बाँध लिया,
अपनी गूँगी-बहरी धुन को अक्षय संगीत दिया,
मैं गीत-गीत हो गया, एक अनुगुंजन के लिये।


मैंने असंख्य बिम्बों
में मनचाहे आकार जिये,
अक्षितिज वेणु-सी बजे, कि ऐसे स्वर-सन्धान किये,
मैं नाद-नाद हो गया, एक रस-चेतन के लिये।

४ फरवरी २०१३

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