तय न हो पाया
					तय न हो पाया
					
					कि चुंबन वासना या प्यार
					प्यार ने स्वीकार कर ली काँच की दीवार
					आह से 
					धूमिल न होगा पारदर्शी रूप
					मेघमाला से ढलेगी इन्द्रधनुषी धूप
					तृप्ति के सर पर लटकती 
					दूधिया तलवार
 
					होंठ पर हैं 
					होंठ, 
					करतल करतलों के पास
					भित्ति चित्रों में मुखर है प्रीति का संत्रास
					यूँ लगे जैसे किनारे पर 
					खड़ी मँझधार
					जानता है कौन
					
					हम किस कंदरा  में लीन
					गंध है बेहोश, ऐसी बज रही है बीन
					हम उतर आए अतल में 
					क्षीर सागर पार
					७ मार्च २०११