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अनुभूति में डा. रंजना गुप्ता की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
नदी बहती है
बौने होते गीत
ये औरतें
वक्त की आहट

गीतों में-
पीर है ठहरी
राग बसंती
वे दिन
योजना असफल
हाट और बाजार

 

हाट-बाजार

हाट और बाजार की
ये सँकरी सी वीथियाँ
जल रहीं इंसानियत
की खेतियाँ

झूठ और पाखण्ड की संजीदगी
मजहबी उन्माद की कुछ बानगी
रक्त लथपथ
गीत की हैं पंक्तियाँ

स्वाद तीखा सा कसैला सत्य का
कत्ल युग के एक पूरे कथ्य का
मोल कौड़ी बिक
रही हैं हस्तियाँ

धर्म ईश्वर चुन दिए दीवार में
औलिया जीसस खड़े लाचार से
आस्था की उड़
रही हैं धज्जियाँ

प्रश्न भाषा जाति का रंग का नहीं
दब चुके हैं बर्फ में रिश्ते कही
उठ गईं
संवेदना की अर्थियाँ

२० अप्रैल २०१५

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