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अनुभूति में शंभु शरण मंडल की रचनाएँ— 

नये गीतों में-
ऐसे भी कुछ पल
ज्योति की खुशी
झूठी झूठी हरियाली
नौबजिया फूल
रोटी की चाह

गीतों में-
अपनी डफली अपने राग
एक सुबह फिर आई
चलो बचाएँ धरती अपनी
डोर वतन की हाथ में जिसके
डोलपाती
तेरी पाती मिली
बाल मजदूर
यह तो देखिए
वादों की मुरली

हे कुर्सी महरानी

संकलन में-
नया साल- एक नया पल आए
        - हो मंगलमय यह वर्ष नया
फागुन- आझूलें बाहों में
दीप धरो- ये कैसी उजियारी है
नयनन में नंदलाल- तुम्हीं ने
होली है- फागुन की अगुआई में
हरसिंगार- हरसे हरसिंगार सखी

  अपनी डफली अपने राग

अपनी अपनी डफली सबकी
अपने अपने राग यहाँ

हर चेहरे की ओट लिए
जाने कितने चेहरे हैं,
बात बात पर माथ उठाती
जात पात की लहरें हैं
होली ईद मनाएँ कैसे
गाए कोई फाग यहाँ

चुनकर जिनको भेजा खुलकर
चूना वही लगाते हैं
वादों के सावन भादो में
लोग यहाँ बह जाते हैं
चट करते हैं सपने सारे
खादीवाले नाग यहाँ

लाख कहो कैसे माने
आपस में है कुछ बैर नहीं
हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई
अपने हैं ये गैर नहीं
सुलग रही है साँसों में
जबतक नफरत की आग यहाँ

५ मई २०१४

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