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अनुभूति में शंभु शरण मंडल की रचनाएँ— 

नये गीतों में-
ऐसे भी कुछ पल
ज्योति की खुशी
झूठी झूठी हरियाली
नौबजिया फूल
रोटी की चाह

गीतों में-
अपनी डफली अपने राग
एक सुबह फिर आई
चलो बचाएँ धरती अपनी
डोर वतन की हाथ में जिसके
डोलपाती
तेरी पाती मिली
बाल मजदूर
यह तो देखिए
वादों की मुरली

हे कुर्सी महरानी

संकलन में-
नया साल- एक नया पल आए
        - हो मंगलमय यह वर्ष नया
फागुन- आझूलें बाहों में
दीप धरो- ये कैसी उजियारी है
नयनन में नंदलाल- तुम्हीं ने
होली है- फागुन की अगुआई में
हरसिंगार- हरसे हरसिंगार सखी

  डोर वतन की हाथ में जिसके

डोर वतन की हाथ में
जिसके मना रहा रंगरेली है

सूखा सूखा
हलक हमारा
प्यास बहुत ही गहरी है
सबको है मालूम नदी की
धार कहाँ पर ठहरी है
चुप हैं फिर भी लोग
यही तो अनबुझ एक पहेली है

गौण हुई है
भूख गरीबी
कुर्सी की बेताबी है
बिन बादल बरसात हुई है
फिर मौसम चुनावी है
रोटी की चाहत में कितनी
फैली हुई हथेली है

डूब रही
ख्वाबों की कश्ती
रोज दलों के दल दल में
सुधबुध खोकर हम बैठे
मालूम नहीं किस जंगल में
रहबर कोठेबाज समझिए
संसद मूक हवेली है

५ मई २०१४

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