अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शंभु शरण मंडल की रचनाएँ— 

नये गीतों में-
ऐसे भी कुछ पल
ज्योति की खुशी
झूठी झूठी हरियाली
नौबजिया फूल
रोटी की चाह

गीतों में-
अपनी डफली अपने राग
एक सुबह फिर आई
चलो बचाएँ धरती अपनी
डोर वतन की हाथ में जिसके
डोलपाती
तेरी पाती मिली
बाल मजदूर
यह तो देखिए
वादों की मुरली

हे कुर्सी महरानी

संकलन में-
नया साल- एक नया पल आए
        - हो मंगलमय यह वर्ष नया
फागुन- आझूलें बाहों में
दीप धरो- ये कैसी उजियारी है
नयनन में नंदलाल- तुम्हीं ने
होली है- फागुन की अगुआई में
हरसिंगार- हरसे हरसिंगार सखी

 

रोटी की चाह

इस रोटी की चाह ने अब तो
कसर न कोई छोड़ी है

फुर्सत की चौपाल नहीं
चाहत के ढोल मजीरे हैं
अब साँसों से लाख गुना
सपनों के बड़े जखीरे हैं
अधरों पर ना गीत किसी के
और न कोई लोरी है

सिमटे सिमटे घर दरवाजे
सिमटे सब जज्बात लिए
चलते फिरते हैं लेकिन
बस अवसादों की रात लिए
हाले दिल किसको बतलाएँ
ना हरखू ना होरी है

वैभव की मंडी में जितने
हैं झालर फानूस खड़े
ऊपर ऊपर ही चमचम हैं
अंदर से मायूस बड़े
है भूखे ज्यादा, जिनके
हाथों में आज तिजोरी है

कूद रहे हैं लोग जहाँ
नित लोभ कपट की खाई में
निकलेगा बटमार वहाँ
कब जाने किस परछाई में
घायल हर दरबार में अपने
बिसबासों की डोरी है

आए थे हम परदेस कभी
गठरी में आपन गाँव लिए
आँखों में खेतों का मंजर
सर बरगद की छाँव लिए
चाट गई अहसास की खुशबू
कैसी धूप निगोड़ी है

१ दिसंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter