अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में यश मालवीय की रचनाएँ —

गीतों में-
आश्वासन भूखे को न्यौते
कहो सदाशिव
कोई चिनगारी तो उछले
गीत फिर उठती हुई आवाज है
चेहरे भी आरी हो जाते हैं
दफ्तर से लेनी है छुट्टी
नन्हे हाथ तुम्हारे
प्रथाएँ तोड़ आये
बर्फ बर्फ दावानल
मुंबई
हम तो सिर्फ नमस्ते हैं
यात्राएँ समय की
विष बुझी हवाएँ
शब्द का सच
सिर उठाता ज्वार

संकलन में —
वर्षा मंगल – पावस के दोहे
नया साल– नयी सदी के दोहे

दोहों में —
गर्मी के दोहे

 

कोई चिनगारी तो उछले

अपने भीतर आग भरो कुछ
जिससे यह मुद्रा तो बदले

इतने ऊँचे तापमान पर
शब्द ठिठुरते हैं तो कैसे
शायद तुमने बाँध लिया है
खुद को छायाओं के भय से
इस स्याही पीते जंगल में
कोई चिनगारी तो उछले

तुम भूले संगीत स्वयं का
मिमियाते स्वर क्या कर पाते
जिस सुरंग से गुजर रहे हो
उसमें चमगादड़ बतियाते
ऐसी राग भैरवी छेड़ो
आ ही जायँ सवेरे उजले

तुमने चित्र उकेरे भी तो
सिर्फ़ लकीरें ही रह पायीं
कोई अर्थ भला क्या देतीं
मन की बात नहीं कह पायीं
रंग बिखेरी कोई रेखा
अर्थों से बचकर क्यों निकलें?

९ जुलाई २००१

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter