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अनुभूति में यश मालवीय की रचनाएँ —

गीतों में-
आश्वासन भूखे को न्यौते
कहो सदाशिव
कोई चिनगारी तो उछले
गीत फिर उठती हुई आवाज है
चेहरे भी आरी हो जाते हैं
दफ्तर से लेनी है छुट्टी
नन्हे हाथ तुम्हारे
प्रथाएँ तोड़ आए
बर्फ बर्फ दावानल
मुंबई
हम तो सिर्फ नमस्ते हैं
यात्राएँ समय की
विष बुझी हवाएँ
शब्द का सच
सिर उठाता ज्वार

संकलन में —
वर्षा मंगल – पावस के दोहे
नया साल– नयी सदी के दोहे

दोहों में —
गर्मी के दोहे

 

विष बुझी हवाएँ

नीम अंधेरा
कड़वी चुप्पी
औं' विष बुझी हवाएँ
हुई कसैली
सद्भावों की
वह अनमोल कथाएँ

बचे बाढ़ से पिछली बरखा
सूखे में ही डूबे
'कोमा' में आए सपनों के
धरे रहे मंसूबे
फिसलन वाली
कीचड़–काई
ठगी ठगी सुविधाएँ
मन की उथली
छिछली नदिया
की अपनी सीमाएँ

यह आदिम आतंक डंक सा
घायल हुए परस्पर
अलग अलग कमरों में पूजे
अपने–अपने ईश्वर
चौराहों पर
सिर धुनती हैं
परसों की अफ़वाहें
आज अचानक
जाग उठी हैं
कल वाली हत्याएँ

१६ फरवरी २००५

 

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