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अनुभूति में यश मालवीय की रचनाएँ —

गीतों में-
आश्वासन भूखे को न्यौते
कहो सदाशिव
कोई चिनगारी तो उछले
गीत फिर उठती हुई आवाज है
चेहरे भी आरी हो जाते हैं
दफ्तर से लेनी है छुट्टी
नन्हे हाथ तुम्हारे
प्रथाएँ तोड़ आये
बर्फ बर्फ दावानल
मुंबई
हम तो सिर्फ नमस्ते हैं
यात्राएँ समय की
विष बुझी हवाएँ
शब्द का सच
सिर उठाता ज्वार

संकलन में —
वर्षा मंगल – पावस के दोहे
नया साल– नयी सदी के दोहे

दोहों में —
गर्मी के दोहे

  मुंबई

साँस साँस
बस अपने लिए तरसना होता है
सुबह हुई
जूते के फीते कसना होता है

लेनी पड़ती होड़ बसों से
लोकल ट्रेनों से
फूल फूल सपनों की लाश
न उठती क्रेनों से
गर्दन तक गहरे दलदल में
धँसना होता है

सिर ही सिर सीढ़ी पर उगते
भीड़ समंदर होती
बोरीवली बांद्रा वीटी
बोरीबंदर होती
पहिया लेकर चक्रव्यूह में
फँसना होता है

बार जुआघर होटल
डिस्को पार्टी रोशन होते
होटों पर जलती सिगरेट
पर बुझे बुझे मन होते
पीकर पागल सा
रोना या हँसना होता है

२४ जनवरी २००६
 

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