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अनुभूति में यश मालवीय की रचनाएँ —

गीतों में-
आश्वासन भूखे को न्यौते
कहो सदाशिव
कोई चिनगारी तो उछले
गीत फिर उठती हुई आवाज है
चेहरे भी आरी हो जाते हैं
दफ्तर से लेनी है छुट्टी
नन्हे हाथ तुम्हारे
प्रथाएँ तोड़ आए
बर्फ बर्फ दावानल
मुंबई
हम तो सिर्फ नमस्ते हैं
यात्राएँ समय की
विष बुझी हवाएँ
शब्द का सच
सिर उठाता ज्वार

संकलन में —
वर्षा मंगल – पावस के दोहे
नया साल– नयी सदी के दोहे

दोहों में —
गर्मी के दोहे

 

प्रथाएँ तोड़ आए

छोड़ आए छोड़ आए
छाँव के क्षण
बहुत पीछे छोड़ आए

बहुत मुश्किल था
स्वयं को बाँध पाना
मुठ्ठियों में रेत का
कैसा ठिकाना
तोड़ आए, तोड़ आए
पाँव से लिपटी
प्रथाएँ तोड़ आए

थकन भी क्या कहें
जो आँख लगती
कहीं कोई रोशनी थी
साथ जगती
जोड़ आए, जोड़ आए
अनकहे कल में
कथाएँ जोड़ आए

लोग थे औ' जेब में थे
कई चेहरे
रास आए नहीं पर
सपने सुनहरे
मोड़ आए, मोड़ आए
हमें मुड़ना था
दिशाएँ मोड़ आए

१६ जून २००१

 

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