अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मृदुला जैन की रचनाएँ—

चाह एक
दृष्टि
बिखरती आस्था
लम्हा-लम्हा ज़िंदगी
भारत माता के प्रति
सपने

 

भारत माता के प्रति

तेरे विजय घोष से माँ!
गूँजता था विश्व सारा
आज क्यों असहाय है माँ!
क्यों शिथिल तेरी भुजाएँ
वीर सारे सो गए क्या?
सोये से उनको जगा दूँ
माँ चाहूँ तुझे वो ही बना दूँ

तेरे मस्तक की शान थे जो
सत्यवादी हरिश्चंद्र सरीखे
आज उपेक्षित से पड़े हैं
अपने हाथों से उठाकर
थोड़ा-सा मैं प्यार दे दूँ
और ज़रा सम्मान दे दूँ
चाहूँ तुझे वो ही बना दूँ

सारे जहाँ से तू निराली
तू मेरी सुंदर है माता
सुंदर से सुंदरतम बना दूँ
तेरी चरण रज को हे माता
विश्व मस्तक पर सजा दूँ
चाहूँ तुझे वो ही बना दूँ

तेरे आँचल की छाँव में माँ!
राम रहीम नानक खेलते थे
अब कहाँ वो छुप गए हैं
आवाज़ दे उनको बुला लूँ
सारी धरा के फूल हे माता
तेरे श्री चरणों में चढ़ा दूँ
माँ चाहूँ तुझे वो ही बना दूँ

09 फरवरी 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter