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अनुभूति में मृदुला जैन की रचनाएँ—

चाह एक
दृष्टि
बिखरती आस्था
लम्हा-लम्हा ज़िंदगी
भारत माता के प्रति
सपने

 

चाह एक

अब लक्ष्य एक अब राह एक
ओ! प्राणेश्वर ओ! प्राण धन
तुझे पा लूँ बस अब
चाह एक!

तुझे चाहने वाले हैं अनेक
पर दृष्टि शून्य है यही एक
तू अनावृत पूरा हो ना हो
तू घूँघट पूरा उठा ना उठा
एक झलक दो झलक
दिखाता चल
मतवाला मुझे बनाता चल
अब लक्ष्य एक अब राह एक
ओ! प्राणेश्वर ओ! प्राण धन
तुझे पा लूँ बस अब
चाह एक!

है पीने वाले तो अनेक
पर खाली प्याला यही एक
तू प्याला पूरा भर ना भर
एक घूँट दो घूँट पिलाता चल
मस्ती में मुझे झुमाता चल
अब लक्ष्य एक अब राह एक
ओ! प्राणेश्वर ओ! प्राण धन
तुझे पा लूँ बस अब
चाह एक!

बेहोशी देने वाले हैं अनेक
होश जगाने वाला बस तू ही एक
भोक्ता भाव हटाता चल
और दृष्टा मुझे बनाता चल
क्षण प्रति क्षण जगाता चल
पाने की राह दिखाता चल
अब लक्ष्य एक अब राह एक
ओ! प्राणेश्वर ओ! प्राण धन
तुझे पा लूँ बस अब
चाह एक!

09 फरवरी 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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