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आसमाँ में
उजाले तीरगी में
जी रहे हैं लोग
भले ही रोशनी कम हो

अंजुमन में—
अँधेरे इस क़दर हावी है
इसलिए कि
किसी का डर नहीं रहा
डर मुझे भी लगा
जिन्हें अच्छा नहीं लगता
ज़ुबां पर फूल होते है
तूफ़ानों की हिम्मत
थोड़ी मस्ती थोड़ा ईमान
नहीं होती
फूलों का परिवार
बढ़े चलिये
बड़े भाई के घर से
भले ही उम्र भर
मुझको पत्थर अगर
ये तो है कि
विचारों पर सियासी रंग
शिकायत ये कि
संसद में बिल
सभी तय कर रहे हैं

हमारे हमसफ़र भी
हमारी चेतना पर

 

जिन्हें अच्छा नहीं लगता

जिन्हें अच्छा नहीं लगता हमारा मुस्कराना भी,
उन्हीं के साथ लगता है हमें तो ये ज़माना भी।

इसी कोशिश में दोनों हाथ मेरे हो गये ज़ख़्मी,
चराग़ों को जलाना भी, हवाओं से बचाना भी।

अगर ऐसे ही आँखों में जमा होते रहे आँसू,
किसी दिन भूल जाएँगे खुशी में मुसकराना भी।

उधर ईमान की ज़िद है कि समझौता नहीं कोई,
मुसीबत है इधर दो वक़्त की रोटी जुटाना भी।

किसी गफ़लत में मत रहना नज़र में आँधियों के है,
तुम्हारा आशियाना भी हमारा शामियाना भी।

परिंदों की ज़रूरत है खुला आकाश भी लेकिन,
कहीं पर शाम ढलते ही ज़रूरी है ठिकाना भी।

ज़ियादा सोचना बेकार है, इतना समझ लो बस,
इसी दुनिया से लड़ना है, इसी से है निभाना भी।

२८ जनवरी २०१३

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