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अनुभूति में रामेश्वर कांबोज हिमांशु की रचनाएँ--

अंजुमन में—
अंगार कैसे आ गए
अधर पर मुस्कान
आजकल
इंसान की बातें
ज़िंदगी की लहर
मुस्कान तुम्हारी

हास्य व्यंग्य में—
कर्मठ गधा
कविजी पकड़े गए

पुलिस परेशान

दोहों में—
गाँव की चिट्ठी
वासंती दोहे

कविताओं में—
ज़रूरी है
बचकर रहना
बेटियों की मुस्कान
मैं घर लौटा

मुक्तकों में—
सात मुक्तक

क्षणिकाओं में—
दस क्षणिकाएँ

गीतों में—
आ भाई सूरज
आसीस अंजुरी भर
इस बस्ती मे
इस शहर में
इस सभा में
उजियारे के जीवन में

उदास छाँव
उम्र की चादर की
कहाँ गए
गाँव अपना
तुम बोना काँटे
दिन डूबा
धूप की चादर
धूप ने
लेटी है माँ

संकलन में—
नई भोर
नया उजाला

  कर्मठ गधा

घोड़ों का कद ऊँचा है, माना पद भी ऊँचा है।
गधा नहीं फिर भी कम है, ढोता बोझ नहीं गम है।
घोड़ा रेस जिताता है, कुछ जेबें भर जाता है।
जो-जो काम गधा करता, घोड़ा कब कर पाता है।

धीरज का है रूप गधा, नहीं क्रोध में जलता है।
रूखा-सूखा खाकर भी, बड़ी मस्ती में चलता है।
मान अपमान से परे गधा, कभी नहीं शोक मनाता है।
अपने ऊँचे मधुर स्वर में, गुण प्रभु के गाता है।

सुख-दुख से निरपेक्ष गधा, सचमुच सच्चा संन्यासी है।
जिस हालत में भगवान रखे, वही हाल सुख-राशि है।
गधा कर्म का पूजक है, सुबह जल्दी उठ जाता है।
बीवी सोती रहती है, गधा ही चाय बनाता है।

एसी चैम्बर में घोड़ा घंटी खूब बजाता है।
गधा देर में जब सुनता तब घोड़ा चिल्लाता है।
दफ्तर में जाकर देखो गधे डटकर के काम करें।
घोड़ा फ़ाइलों में छुपकर जब चाहे आराम करे।

घोड़ा खाता है तर माल गधा बस पान चबाता है।
चाहे जितना भी थूके न पीकदान भर पाता है।
जिस दिन गधा नहीं होगा दफ्तर बन्द हो जाएँगे।
आरामतलब जो भी घोड़े सारा बोझ उठाएँगे।

इसीलिए मैं कहता हूँ गर्दभ का सम्मान करो।
राह-घाट में मिल जाए कभी न तुम अपमान करो।

९ मई २००६

 

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