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अनुभूति में रामेश्वर कांबोज हिमांशु की रचनाएँ--

अंजुमन में—
अंगार कैसे आ गए
अधर पर मुस्कान
आजकल
इंसान की बातें
ज़िंदगी की लहर
मुस्कान तुम्हारी

हास्य व्यंग्य में—
कर्मठ गधा
कविजी पकड़े गए

पुलिस परेशान

दोहों में—
गाँव की चिट्ठी
वासंती दोहे

कविताओं में—
ज़रूरी है
बचकर रहना
बेटियों की मुस्कान
मैं घर लौटा

मुक्तकों में—
सात मुक्तक

क्षणिकाओं में—
दस क्षणिकाएँ

गीतों में—
आ भाई सूरज
आसीस अंजुरी भर
इस बस्ती मे
इस शहर में
इस सभा में
उजियारे के जीवन में

उदास छाँव
उम्र की चादर की
कहाँ गए
गाँव अपना
तुम बोना काँटे
दिन डूबा
धूप की चादर
धूप ने
लेटी है माँ

संकलन में—
नई भोर
नया उजाला

  उदास छाँव

नीम पर बैठकर
नहीं खुजलाता
कौआ अब अपनी पाँखें
उदास-उदास है अब
नीम तले की शीतल छाँव।

पनघट पर आती
कोई राधा
अब न बतियाती
पनियारी हैं आँखें
अभिशप्त-से अधर
विधुर-सा लगता सारा गाँव।

सब अपने में खोए
मर भी जाए कोई
छुपकर निपट अकेला
हर अन्तस रोए;
चौपालों में छाया
श्मशानी सन्नाटा
लगता किसी तक्षक ने
चुपके से काटा
ठिठक-ठिठक जाते
चबूतरे पर चढ़ते पाँव।

न जवानों की टोली
गाती कोई गीत
हुए यतीम अखाड़े
रेतीली दीवार-सी
ढह गई
आपस की प्रीत
गली-गली में
घूमता भूखे बाघ-सा अभाव।

१ जनवरी २००५

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