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चिड़िया

सारे शारीर पर लगाये मैंने  
पंख चिड़ियों के
नाखूनों को बनाया
पंजों सा नुकीला
दोनों हाथों को
डैनों की तरह फैलाकर
जोरों से फड़फड़ाया मैंने
पर उड़ न सका
मैं।

मैंने जाना
आदमी से चिड़िया हो जाना
इतना आसान नहीं।

चिड़िया होने के लिए
मेरे जैसे इन्सान को
सबसे पहले सीखना होगा
बिना किसी अलार्म के
सूरज की दस्तक से पहले
आँखें खोल लेने का गुर।

नन्ही सी चिड़िया
असीम आकाश को पंखो
में बाँध लेने से उपजे गर्व को
कैसे छिटक देती है
पंखो पर पड़ी
एक बूंद की तरह
और निर्लिप्त भाव से
समय पर कैसे लौट आती है
अपने छोटे से घर में
सीखना होगा मुझे
चिड़िया होने के लिए।

पेड़-पेड़, शाख-शाख
घर-आँगन, खेत-खलिहान
छप्पर, मुंडेर
नदी और पहाड़
कहाँ-कहाँ डोलती है चिड़िया
फिर भी कभी भटकती नहीं
कहूँगा उससे
मुझे भी थमा दे
वह डोर
जो बांधे रखे मुझे
मेरे घर से।

अपने डैनों के तले
कोमल जीवन को कठोर
तपस्या से सहेजती है
वह।
और,
सारी ज़रूरी कलाएं
सिखाने के बाद
कब छोड़ देना होता है मोह
चिड़िया बखूबी जानती है।

यह कला भी
चिड़िया ही सिखा सकती है
मुझे।

और आखिर में
सबसे ज़रूरी बात
यह रोनी सूरत छोड़
सीखना ही होगा मुझे
चहकना।

२७ अगस्त २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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