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सेतुबन्ध

शब्दों
क्या तुम्हें भी याद आता है
वह समय, जो
साथ गुजारा हमने
बड़े भाई सा
तुम्हारा आशीष
सदा रहा मेरे सिर पर

जिंदगी की पथरीली राहों पर
मैं जब भी लड़खड़ाता था
तुम्हीं सँभालते थे, और
धर देते थे हाथों में
एक नई उम्मीद

आज,
समय की नदी के इस पार, जब
मैं खुद को
अंकों के जाल में
उलझा पाता हूँ
मुझे तुम सब
बहुत याद आते हो

शब्दो,
हाथ बढ़ाओ
मुझे एक पुल बाँधना है
इस नदी पर
मैं, अब
लौटना चाहता हूँ

३१ अक्तूबर २०११

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