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अनुभूति में अशोक गुप्ता की रचनाएँ-

नई कविताएँ—
अजन्मी
चीं भैया चीं
लंबी सड़क

कविताओं में—
उन दिनों
कैसे मैं समझाऊँ
झूठ
ग़लती मत करना
गुर्खा फ़ोर्ट की हाइक
दादाजी
नदी के प्रवाह मे
पत्थर
पागल भिखारी
भाग अमीना भाग
माँ 
रबर की चप्पल
रेलवे स्टेशन पर
रामला

चीं, भैया चीं!

आज फिर जून की चिलचिलाती धूप
में चलते चलते थक गया हूँ
आज फिर कुछ नहीं बेचा, कुछ नहीं मिला

जी चाहता है बगीचे की बैंच पर
कुछ देर सो जाऊँ
पर नहीं
अभी बहुत दूर चलना है

बचपन की याद आती है,
बड़ा भाई मेरा हाथ मरोड़े
मेरी गर्दन अपनी भिच्ची में लेकर
दबाता है
बोल चीं, बोल चीं
मैं दुबला पतला, भैया से सात साल छोटा
नहीं बोलूँगा, नहीं, कभी नहीं
साँस घुटने को होती, तो भी नहीं
नहीं, कभी नहीं

पोटली अपने कंधे पर एक बार फिर
खिसकाकर जमाता हूँ
और कहना चाहता हूँ- कभी नहीं
पर मुँह से निकलता है
चीं, भैया चीं।

३० जून २००८

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