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अनुभूति में अशोक गुप्ता की रचनाएँ-

नई कविताएँ—
अजन्मी
चीं भैया चीं
लंबी सड़क

कविताओं में—
उन दिनों
कैसे मैं समझाऊँ
झूठ
ग़लती मत करना
गुर्खा फ़ोर्ट की हाइक
दादाजी
नदी के प्रवाह मे
पत्थर
पागल भिखारी
भाग अमीना भाग
माँ 
रबर की चप्पल
रेलवे स्टेशन पर
रामला

झूठ

मार्गाओ, गोवा
फादर एग्निल का आश्रम,
कुछ कॉटेज।

एक 'माँ' हर घर में
और अनाथ बच्चे।
हर घर साफ,
व्यविस्थत।

अक्सर शाम को
हम वहाँ जाते हैं,
अरुणा, मैं,
और छ: वर्षीय आभा।

मुँडेर पर बैठे, हम
बच्चों को खेलता देखते हैं।
शाम गहराते स्लेटी रंगों में
बुझ रही है,
बच्चे इधर उधर दौड़ते हुए,
थिरकते, धक्के देते और लड़ते।

पता नहीं कब से फ्रेज़र
चुपके से मेरे पास खड़ा है।
अपने नन्हे हाथों से मेरी उँगली पकड़कर
पूछता है,
"क्या तुम मेरे पापा बनोगे?"

आकाश में आखिरी रोशनी
उस रात की खामोशी में
धुँधला कर समा गई।
मैंने झूठ बोला "हाँ",
बीस साल पहले।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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