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अनुभूति में अनिल मिश्रा की रचनाएँ-

गीतों में-
छू दिया तुमने अचानक
छोटी सी यह बात
गा न गा कोकिल
गोरी गोरी धूप
चौराहे पर
धीरे धीरे शाम

अंजुमन में-
आज तक सबने मुझे
इंकलाबी हाथ को
फूल की खुशबू
बेखुदी में यों उधर रहे
महकती संदली यादें

 

आज तक सबने मुझे

आज तक सब ने मुझे काम का सामाँ समझा
और उसको ही सही हाँ दिले नादाँ समझा

बात जब उठ ही गयी तो ज़रा सुन लो तुम भी
ज़िन्दगी तुमने मुझे कब कहाँ अपना समझा

बाद मुद्दत के किसी ने मेरे जज़्बात छुए
आँख भर आई किसी ने मुझे इंसाँ समझा

सोचता था मैं सुलझ जाएगी उलझी गुत्थी
वाकई आसाँ नहीं है जिसे आसाँ समझा

जाल के ऊपर बिछाया गया था दाना वो
था परिंदा बहुत नादां उसे दाना समझा

१२ मई २०१४

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