अनुभूति में
अनिल मिश्रा की रचनाएँ-
गीतों में-
छू दिया तुमने अचानक
छोटी सी यह बात
गा न गा कोकिल
गोरी गोरी धूप
चौराहे पर
धीरे धीरे शाम
अंजुमन में-
आज तक सबने मुझे
इंकलाबी हाथ को
फूल की खुशबू
बेखुदी में यों उधर रहे
महकती
संदली यादें |
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महकती
संदली यादें
महकती संदली यादें हवा के साथ आती हैं
कभी वे मुस्कराती हैं कभी वे गुनगुनाती हैं
वही मिट्टी घरौंदों को बनाने औ’ गिराने में
हुई झड़पें, लगी चोटें अभी भी गुदगुदाती हैं
समंदर में कभी अश्कों के जब हम डूबने लगते
वही कश्ती पुरानी काग़ज़ों की आ बचाती है
छिले घुटने, सने कीचड़ पहुँचते थे घरों में जब
हमारे ज़ख्म धो हल्दी लिये माँ याद आती हैं
वही बरगद गिरे थे हम अनेकों बार जिस पर से
उसी पर बैठ कर बुलबुल हमें अब भी बुलाती हैं।
१२ मई २०१४ |