अनुभूति में
अनिल मिश्रा की रचनाएँ-
गीतों में-
छू दिया तुमने अचानक
छोटी सी यह बात
गा न गा कोकिल
गोरी गोरी धूप
चौराहे पर
धीरे धीरे शाम
अंजुमन में-
आज तक सबने मुझे
इंकलाबी हाथ को
फूल की खुशबू
बेखुदी में यों उधर रहे
महकती
संदली यादें |
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चौराहे पर
नहीं रहा अब अपने अंदर
कोई अंतर्द्वंद्व।
भाव जगत् में अपने को
मैं आज अकेला पाता
लगता है जैसे सबसे ही
टूट गया हो नाता
जीवन से कृतकार्य हो चुके
आँसू औ’ आनंद
इस युग से उस युग तक
यों ही खड़ा रहूँगा मैं
चौराहे पर शिला पट्ट सा
गड़ा रहूँगा मैं
कोई मुझको देखे या वह
रक्खे आँखें बंद
१५ दिसंबर २०१४ |