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अनुभूति में अनिल मिश्रा की रचनाएँ-

गीतों में-
छू दिया तुमने अचानक
छोटी सी यह बात
गा न गा कोकिल
गोरी गोरी धूप
चौराहे पर
धीरे धीरे शाम

अंजुमन में-
आज तक सबने मुझे
इंकलाबी हाथ को
फूल की खुशबू
बेखुदी में यों उधर रहे
महकती संदली यादें

 

गा न गा कोकिल!

गा न गा कोकिल!
तुम्हारी कौन सुनता।

मुड़ चुका है युग
तिमिर की ओर
अब तो छोड़
पावन दीप जलता

क्या नहीं तुम जानती
दौर है यह तो
मशीनी शोर के सम्मान का
तीव्र पश्चिम की हवा में
फ़िक्र करता कौन है अब
मधुर कोकिल गान का?

बस बचाती जा तू
अपनी अस्मिता।

युग बदलते देर लगती क्या?
प्रकृति में पुनः
तेरा मान होगा।
जब थकेंगी ये मशीनें
पुनः तेरे मधुर स्वर का
सृष्टि मे सम्मान होगा।

देखती बस जा तू कोकिल!
युग बदलता।

१५ दिसंबर २०१४

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