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अनुभूति में निर्मल गुप्त की रचनाएँ-

नई कविताओं में-
मेरी कविता में
मेरा नाम
मैं जरा जल्दी में हूँ
रामखिलावन जीना सीख रहा है
सुबह ऐसे आती है

छंदमुक्त में-
इस नए घर में
एक दैनिक यात्री की दिनचर्या
एहतियात
गतिमान ज़िंदगी
घर लौटने पर
डरे हुए लोग
तुम्हारे बिना अयोध्या
नहाती हुई लड़की
नाम की नदी
पहला सबक
फूल का खेल
बच्चे के बड़ा होने तक
बयान
बाघखोर आदमी
मेरे ख्वाब
रोटी का सपना
लड़कियाँ उदास हैं
हैरतंगेज़
रेलवे प्लेटफ़ार्म

 

मेरा नाम

मेरा नाम मेरा नाम है बस।
न इससे अधिक कुछ
न इससे कम।
एकदम पारदर्शी।
इसमें मेरा अक्स तुम्हें
ढूँढे न मिलेगा।

अनेक अन्वेषी आये
मेरे नाम में
मेरी शिनाख्त तलाशते
और चले गए निराश
सर खुजाते।
मैं वहाँ था ही नहीं
उनको मिलता कैसे?

मेरा नाम हो या किसी का भी
एक सूनी सड़क है
जहाँ दिशा बोध की
हमारी सारी पारंपरिक समझ
गडमड हो जाती है।

मेरा नाम और बहुत से नामों की तरह
किसी बाजीगर की पोटली में
तमाम ऊलजलूल चीजों की तरह
सदियों से बेमकसद पड़ा है।
इसके बावजूद नाम का तिलिस्म है
कि टूटता ही नहीं।

मेरा नाम यदि तुम्हें याद हो
तो एक बार वैसे ही पुकारो
जैसे कभी राजगृह त्याग कर जाते
सिद्धार्थ को यशोधरा ने
अपनी नींद के बीच
निशब्दता में पुकारा था
मैं अपने नाम को
उसकी अर्थहीनता में
फिर से जीना चाहता हूँ।

९ दिसंबर २०१३

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