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अनुभूति में सुनील साहिल की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
उठो भी अब
काश
छोटी छोटी बूँदें
जब तुम आते हो
तुमसे मिलने के बाद
दरियागंज के आसपास

हास्य व्यंग्य में-
जोंक
गुरू की महिमा

 

दरियागंज के आसपास

आज फिर
पशुओं के रक्त, अस्थियों, मुंडों से
भरी गाड़ी गुज़र चुकी है
आज फिर
छह बरस का हरिया
चाय के गिलास लिए
अपने नीचे सरकते 'नेकर' को
पकड़े हुए जा चुके हैं
रिक्शे पर बैठी नसीमा
सिर झुकाए आज फिर
एक वृद्ध की बगल में
मृतप्राय हो चुकी है
मगर चुका दिया गया है ऋण
आज फिर
कुछ मैले बच्चे
ढूँढते हैं झूठन
महानगर के 'डस्ट-बिन' में
आज फिर
सो गया है हँसते-हँसते
वो पागल
सड़क पर पड़ी लाश को
लाँघते हुए आज फिर
जा रहे हैं लोग
आज फिर
मैं सोने का प्रयास करूँगा

१६ मार्च २००६ 

 

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