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इस निर्मम समय में
इस निर्मम समय में
गति मूलमंत्र है
जीवन का
प्रकाश नजरबंद है
ड्राइंगरूम के कोने में रखे
लैम्पशेड में
अँधेरे ने हड़प ली है
उसकी चाल
बदल रहा है सब कुछ
बड़ी तेजी से
वसुधा बन चुकी है
एक खुला बाज़ार,
कुटुम्ब बदल रहे हैं
होटलों में, और
देह एक कमोडिटी में
आदमी बदल रहा है
आँकड़ों में, और
शब्द शोर में
तुम,
कविता ही पढ़ते रहे, तो
तो हाशिये पर छूट जाओगे
उठा लो किसी भी रंग का एक झंडा
गला फाड़ कर लगाओ
कोई लोकप्रिय नारा
शामिल हो जाओ
किसी जुलूस में
३१ अक्तूबर २०११
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