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उड़ान

चिड़िया
तुम रोज आती हो
एक सुंदर सा गीत गाती हो
और मुझे जगाती हो
तब,
जब आधा शहर
सो रहा होता है।

देखता हूँ तुम्हें
एकटक।
यह स्फूर्ति
यह चपलता
इतनी शक्ति
कहाँ से लाती हो, जो
धरती को घुमाने से लेकर
सूरज के रथ को खींच लाने जैसे
बड़े-बड़े काम
अकेले कर पाती हो।

उड़ान तो
कहीं मेरे अंदर भी है
लेकिन मैं तो बस
पर तौलता ही रह जाता हूँ
ज़मीन है कि छूटती ही नहीं

चिड़िया,
तुम रोज आना
मुझे एसे ही जगाना
एक दिन मैं भी
तुम्हारे साथ
भरूँगा
उड़ान।

१४ फरवरी २०११

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