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अनुभूति में तरुण भटनागर
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विचित्र ज़िन्दगी़
विरोध के तीन तरीके
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समुद्र किनारे शाम
क्षितिज की रेखा

 

आदमी के लिए

आदमी प्रश्न नहीं पूछता,
और न ही मेरे प्रश्नों का जवाब देता है,
पर मैं बहुत से प्रश्न और जवाब देने को आतुर रहा हूँ
मरने से पहले,
मुझे बार-बार कहने है प्रश्न और जवाब,
आदमी के लिए।
यूँ एक मौन सहमति है,
मेरे और आदमी के बीच
कि मेरे ही प्रश्न होंगे और मेरे ही जवाब,
और मैं उन प्रश्नों का जवाब भी दूँगा,
जिन्हें गटक गया था आदमी,
पान की दुकान में ढेर सारे तंबाकू और गुटके की तरह,
बिना यह सोचे कि उनसे कैंसर हो सकता है।
और यह सोचकर मुझे शर्म आती है,
कि वह गटक गया था, प्रश्न और जवाब,
जिंदगी के प्रश्न और जवाब, पूछना चाहता हूँ आदमी से,
कि क्या वह भी शर्माता है,
क्या उसकी भी एक नस धड़कती रह जाती है,
और डेथ सर्टिफिकेट बन नहीं पाता है।

९ जून २००५

 

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