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अनुभूति में तरुण भटनागर की
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विचित्र ज़िन्दगी़
विरोध के तीन तरीके
वृक्ष की मौत पर
समुद्र किनारे शाम
क्षितिज की रेखा

  चिंदियाँ

भीतर एक बिलंग है।
जिस पर सूख रहे हैं-
चीथड़े।
बरसों बाद,
जो चिंदियाँ रही हैं,
उन्हें,
धोकर, सुखाकर, प्रेसकर
पहरने का,
एक सुकून है।
हाँ,
एक झिझक भी है,
लोग क्या सोचते होंगे,
बिना छुपी नग्नता देखकर।

९ जून २००५
 

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