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अनुभूति में विजयेन्द्र विज की रचनाएँ-

नई कविताओं में-
आड़ी तिरछी रेखाएँ
ऋतुपर्णा तुम आज भी नहीं आयीं
जुगनुओं अब तुम सितारे हो गए हो
बेचैनी
वृंदावन की विधवाएँ
शब्द तुम


कविताओं में-
अक्सर, मौसमों की छत तले
अरसे के बाद
आँखें
एक और वैलेन्टाइन्स डे
कभी वापस लौटेगी वो
खोजो कि वो मिल जाए
दस्तावेजों की दुनिया
मुकर गए वो लोग
रंग ज़िंदगी की तरह
लाल बत्तियों में साँस लेता वक्
वह आवाज अक्सर मेरा पीछा करती है

सोचता हूँ

 

जुगनुओं अब तुम सितारे हो गए

इतना गहरा सन्नाटा
बड़ा ही भीषण
और डरावना
कहाँ गए सब

अब यहाँ
चिडियों का कलरव
भी नही गूँज रहा
आसमान भी इतना
शांत क्यों है

कहाँ गुम हो गई
सूरज की तेज़ गर्मी
और,
बादलों की
उमड़ घुमड़

अब वे
यहाँ क्यों नहीं आते
क्या पथिक अपना
रास्ता भूल गए
या फिर,
जुगनुओं!!! अब तुम सितारे हो गए

५ अक्तूबर २००९ 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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