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अनुभूति में विजयेन्द्र विज की रचनाएँ-

नई कविताओं में-
आड़ी तिरछी रेखाएँ
ऋतुपर्णा तुम आज भी नहीं आयीं
जुगनुओं अब तुम सितारे हो गए हो
बेचैनी
वृंदावन की विधवाएँ
शब्द तुम


कविताओं में-
अक्सर, मौसमों की छत तले
अगर किसी रोज
अरसे के बाद
आँखें
एक और वैलेन्टाइन्स डे
कभी वापस लौटेगी वो
खोजो कि वो मिल जाए
दस्तावेजों की दुनिया
मुकर गए वो लोग
रंग ज़िंदगी की तरह
लाल बत्तियों में साँस लेता वक्
वह आवाज अक्सर मेरा पीछा करती है

सोचता हूँ

 

शब्द तुम..?

शब्द तुम
कहाँ चले गए
पता ही नहीं चला
आधी रात के बाद
कहाँ गायब हो गए

जाने कौन से दरवाज़े
तुम्हारे लिए खुलते हैं
और,
जाने किस घर में
अब तुम दस्तक देते हो
तरह-तरह के स्वांग
रचाने लगे हो
कब तक यों ही,
छलते रहोगे मुझे तुम
अब तो मैं,
तुम्हारी उम्र का हो गया हूँ

५ अक्तूबर २००९

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