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अनुभूति में डॉ. विनोद निगम की रचनाएँ

गीतों में-
अभी बरसेंगे घन
उनको लोग नमन करते हैं
एक और गीत का जनम हो
क्यों कि शहर छोटा है
खुली चाँदनी का गीत
घटनाओं के मन ठीक नहीं हैं
छंदों के द्वार चले आए
टूट गया एक बार फिर
यह क्या कम है
सबकी उड़तीं अलग ध्वजाएँ

 

अभी बरसेंगे घन

बरसेंगे अभी
अभी बरसेंगे घन

गन्धों के हाथ पकड़
दक्षिणी हवाएँ, आएँगी ही
खिड़की के काँचों पर
बूँदों से कोई सन्देशा ,लिख जाएँगी ही
बाँचेगा जिसे
जिसे बाँचेगा मन
बरसेंगे अभी, अभी बरसेंगे घन

दृष्टि के बहावों में
धुँधले कुछ इन्द्र धनुष तैरेंगे ही
और कुछ अकेलेपन
मौसम को बाँहों भर,
किये धरे पर पानी फेरेंगे ही
दंशेंगे सभी प्रहर
दंशेंगे क्षण
बरसेंगे अभी-अभी बरसेंगे घन

गीली दीवारों से लगे बुझे
ठंडे दालानों में
जमे हुए सन्नाटे पिघलेंगे ही
अंग अंग परसेगा,ऐसा गीलापन
संयम के पाँव जहाँ फिसलेंगे ही
टूटेंगे सभी
सभी टूटेंगे प्रण
बरसेंगे अभी अभी बरसेंगे घन

३० मार्च २००९

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