अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डॉ. विनोद निगम की रचनाएँ

गीतों में-
अभी बरसेंगे घन
उनको लोग नमन करते हैं
एक और गीत का जनम हो
क्यों कि शहर छोटा है
खुली चाँदनी का गीत
घटनाओं के मन ठीक नहीं हैं
छंदों के द्वार चले आए
टूट गया एक बार फिर
यह क्या कम है
सबकी उड़तीं अलग ध्वजाएँ

 

एक और गीत का जनम हो

एक बार और
अधर तक आओ
एक और गीत का जनम हो

वृक्ष में समाएँ
अर्पिता लताएँ
घेरों में बहते क्षण भर दें
नीली पंखुरियों पर, उभरें आकृतियाँ
फूलों पर
कुनकुने हस्ताक्षर कर दें

चन्दन हों तपे प्रहर
श्वाँसें हों लहर-लहर
मन हो आकाशी, बौने सभी नियम हों

परिचित सी देह गंध
अंग अंग परसे
पीपल के टूटे पत्ते सा
काँपे तन फिर से
पोर-पोर पिघलें, सीमाएँ घुल जाएँ
एक शब्द बन जाये, बस दो अक्षर से

बाहों में पाप की
समर्पें कुछ पुण्य-क्षण
घटनाक्रम यही आजनम हो
एक और गीत का जनम हो

३० मार्च २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter